महाकाल की नगरी में
सब संभव दिखता है
क्या जीवन क्या मृत्यु
सब बौना दिखता है।।
सौंदर्य के बड़े-बड़े प्रतिमान
विलासिता और वैभव के आडंबर
विकास और विनाश का खेल
यहां से राख दिखता है।।
ऊर्जा का केंद्र
ब्रह्मांड की धुरी
सब उनके इर्द-गिर्द
चक्कर काटता है।।
सुबह और शाम
उनसे पूछ कर होते है
मौसम भी उनकी
आज्ञा से बदलता है।।
बड़े-बड़े तोप ज्ञानी भी
अज्ञानी बने वहाँ खड़े होते है
नज़रे-ए-इनायत हो उनकी
इस उम्मीद में रहते हैं।।
जो सत्ता के मद में
मंच से दहाड़ते है
उनके सामने कर जोड़
सत्ता के लिए गुहार लगते है।।
@अजय कुमार सिंह
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महायोगी