राजनीति

रणविजय

रणविजय हो तुम   क्यों व्यर्थ में डरते हो   यह रण तुम्हारी रचना फिर क्यों नहीं चढ़ …

भाषण

धरती-आसमान के बीच   एक दुनिया बसती है   कुछ लोग रहते हैं   कुछ बातें होती है   दुन…

बाबा बर्फानी

बाबा बर्फानी टूर एंड ट्रेवल एजेंसी रुद्रा टी स्टॉल महादेव भोजनालय शंकर पान भंडार सोचता था आपके न…

मैं हिंदी हूं

मुझमें ही तुम खाते हो मुझको ही बिछाते हो मुझमें ही तुम सोते हो मुझको ही तुम पढ़ते हो मैं हिंदी ह…

पुरुषार्थ

हम आग थे दरिया से टकरा तूफां में बदल गए।। जिधर मुड़े धुंए और धूल का ग़ुबार उठ गया।। हम चाहे न चाहे…

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