योगी हूं
मेरे सामने
न कोई जवान
न कोई बच्चा
जीवन-मरण के पार हूं
अपार हूं।।
पल में बनती है सत्ता
पल में धूल में मिलती है
आकाश- पाताल
मेरी अंदर अंगीकार करती है
इस लोक से उस लोक के पार हूं
अपार हूं।।
सत्य क्या
असत्य क्या
पर्वत-पहाड़ हूं
शब्द की परिभासा से पार हूं
अपार हूं।।
आग से ज्यादा
तेज अपना
पानी से ज्यादा
तरल मन अपना
पंच भूत का साक्षात्कार हूं
अपार हूं।।
@अजय
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योग
सुंदर रचना सर।
जवाब देंहटाएंBahut Achaa.....All the Best... Keep it up..... Aur likhoo......
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