बंजारा हूं
आवारा घूमता हूं
न घर का पता
न कोई ठिकाना।।
श्मशान हो
कब्रिस्तान हो
सब जगह निशा
सब जगह आशिया अपना।।
न रात का इल्म
न दिन का पता
कोतवाल के खाते
में दर्ज है लापता
पता अपना।।
क्या खाऊंगा
कहां सोऊंगा
कल क्या पहनूंगा
मेरे यार को भी
नहीं पता।।
@अजय कुमार सिंह