शिखर



वो हूँ
जो पल-पल में
जीता हूँ 
पल-पल में नष्ट 
होता हूँ।।

कोई उम्र नहीं मेरी
धधकती ज्वाला हूँ
ऊर्जा के प्रवाह में जीता हूँ
ऊर्जा में ही विलीन हो जाता हूँ।।

मृत्यु-अमरत्व मुबारक उनको 
जो इनका मायने समझते है
ना-समझ हम जैसे 
बस काया बदलते रहते 

न अहसास है कुछ पाने का 
न दर्द है कुछ खोने का 
आवरण चढ़ा रखे है 
अपने ऊपर वैराग का।।

जो समय बीत गया 
जोड़-घटा गुणा-भागा
करने के क्या मायने 
वो अब कहां आने वाला।।

शिखर पर तो वही चढ़ता है
जो गिरने का माद्दा रखता है 
धूल झाड़ खड़ा होता है 
फिर से चल पड़ता है।।
@अजय

ajaysingh

cool,calm,good listner,a thinker,a analyst,predictor, orator.

1 टिप्पणियाँ

  1. प्रशंसनीय sir 👏
    कोशिश आखिरी दम तक करनी चाहिए,
    मंजिल मिले या तजुर्बा दोनों नायाब है।

    जवाब देंहटाएं
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