अजीब कश्मोकश है
घिरा हुआ हाई द्वंद में
इच्छाओं का दमन करूँ की
इच्छाओं को जागृत करूँ ।।
इसी बिंदु पर सारा
केंद्रीकरण है
मोक्ष की प्राप्ति
इच्छाओं के दमन से है
लक्ष्य की प्राप्ति
इच्छाओं को जागृत कर के है ।।
संकट बड़ा विकट है
लक्ष्य साधूँ तो
धर्म से जाता हूँ
मोक्ष साधूँ तो
रण से जाता हूँ।।
दोनो को साधूँ तो
द्वंद में घिर जाता हूँ
फिर किस तरफ़ का
रुख़ करूँ ।।
हे योगी
आपके शरणागत हूँ
शरण में लो मुझको
यथार्थ बताओ।।
द्वंद क्यूँ है इतना
राजा रंक की तरह
प्रलाप क्यूँ करता है
रंक राजा से
उम्मीद क्यूँ करता है ।।
ये निर्भरता
कमजोरी है
सामाजिकता है
या कुछ और ।।
युद्ध के बाद
पश्चाताप क्यूँ होता है
जीतने के बाद भी
मलाल क्यूँ रह जाता है।।
फिर लड़ाई क्यूँ जरूरी है
जब सब को एक दिन मरना ही है
तो फिर मरना क्यूँ जरूरी है
कई सवाल है अनसुलझे अभी।।
चाहता हूँ शांत रहूँ
शून्य का रस्वादन लू
मौन का श्रृंगार करूँ
योग में मगन रहूँ।।
बस यही कामना है
महायोगी है आप
मिले मुझको आपसे
यह अद्भुत दीक्षा।।
@अजय
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