रणविजय

 


रणविजय हो तुम 

क्यों व्यर्थ में डरते हो 

यह रण तुम्हारी रचना

फिर क्यों नहीं चढ़ लड़ते हो।।

 

तुम्हें अपना नाम सिद्ध करना होगा

जीवन और मृत्यु पर वस है तेरा 

जीवन रूपी रणभूमि में 

रणविजय बन हुंकार करना होगा।। 


तुम्हारे जैसे वीर का 

होता कभी-कभी अवतार है 

जैसे चाहो वैसे बढ़ो  

जीत पर तुम्हारा अधिकार है।। 


वश में तुम्हारी सारी दिशाएँ 

इन्द्रियों पर कब्जा तेरा 

कौन तुम्हें रोक सकता है 

सफल होने से 

दिशाएँ कर रही है जयकार तेरा।। 


प्रकृति की कृपा तुमपर 

ईश्वर भी तुमसे अघाते हैं 

योद्धा का नाम मिला तुमको

मन करता है करते रहे दीदार तेरा।। 


अभी छोटे हो तुम 

बहुत कुछ तुमको करना है 

बहुतेरे तुम्हारे चाहने वाले 

सब पर अधिकार तेरा।। 


सुन रहे हो रणविजय 

तुम बहुत प्यारे हो 

नाम तुम्हारा अद्भुत है 

मम्मी पापा के दुलारे हो।। 


प्यार मिले तुमको ख़ूब सारा 

कभी किसी चीज़ की कमी हो 

ख़ूब सफलता, खूब प्रसिद्धि 

अथाह ऊर्जा के तुम स्वामी हो।।

@ अजय

ajaysingh

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