रणविजय
रणविजय हो तुम क्यों व्यर्थ में डरते हो यह रण तुम्हारी रचना फिर क्यों नहीं चढ़ …
रणविजय हो तुम क्यों व्यर्थ में डरते हो यह रण तुम्हारी रचना फिर क्यों नहीं चढ़ …
रात कुछ कह रही है जरा सुनो गौर से कुछ तो रहस्य है जो अंधेरे में छिपा है अदृश्य …
जिंदगी क्या है कभी-कभी लगता है दिन समय तारीखों में ही शायद कैद है।। क्या जिंदगी कभी कैलेंडर से ब…
बाबा बर्फानी टूर एंड ट्रेवल एजेंसी रुद्रा टी स्टॉल महादेव भोजनालय शंकर पान भंडार सोचता था आपके न…
आग की लपटे अब शांत हो रही थी सुबह होने को आया अंतिम प्रश्न का समय हो आया था भक्त भगवान से पूछता …
जीवन-चक्र में उलझा व्यक्ति दिल्ली में घूमता है क्या सही क्या गलत है अक्सर सोचते रहता है।। क्या द…
मुझमें ही तुम खाते हो मुझको ही बिछाते हो मुझमें ही तुम सोते हो मुझको ही तुम पढ़ते हो मैं हिंदी ह…
जवान हो फिर क्या सोचते हो खून खौलती है तुम्हारी रोज क्रांति की बातें करते हो सबको कठघरे में खड़ा…
जीवन रण है लड़ना ही होगा इधर-उधर क्या देखते हो जो भी परिणाम आये युद्ध भूमि में उतरना ही होगा।। क्…