रात कुछ कह रही है
जरा सुनो गौर से
कुछ तो रहस्य है
जो अंधेरे में छिपा है
अदृश्य है अभी
दीवारों पर लिखा है।।
लगता है कहीं हलचल
मची है आधी रात
मन तड़पा है कहीं
टूटे है शायद जज्बात
कौन किसको दोषी कहे
कई है सवालात।।
अनसुलझे प्रश्न हैं कई
किस पर उंगली उठाये
जिसको देखता हूं
कठघरे में खड़ा मिलता है
मुश्किल है तय करना
कौन है जज
कौन है गुनाहगार।।
अब तुम ही बताओ सही
क्या हम दोषी हैं
सत्ता का चरित्र ऐसा
व्यक्ति तो इकाई है
दिखता समावेसी है।।
@अजय
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सत्ता