जीवन-चक्र में उलझा व्यक्ति
दिल्ली में घूमता है
क्या सही क्या गलत है
अक्सर सोचते रहता है।।
क्या देखें क्या ना देखें
हां और ना में रहता है
क्या करें ना करें के बीच
दौड़ता रहता है।।
जब आदमी अकेला होता है
यही करता रहता है
अपने ही विचारों से उत्पन्न
भावनाओं को जाँचता- परखता है।।
कुछ न होने और होने के बीच
खुद को ढूंढता रहता है
जैसे ही खुद का साक्षात्कार होता है
कई सारे सवालों के साथ खुद को पता है।।
@अजय कुमार सिंह