मैं हिंदी हूं


मुझमें ही तुम खाते हो
मुझको ही बिछाते हो
मुझमें ही तुम सोते हो
मुझको ही तुम पढ़ते हो
मैं हिंदी हूं।।

जब चोट लगती है
जब दर्द होता है
मुझ में ही तुम रोते हो
मैं हिंदी हूं।।

सुबह की सैर पर
मुझको ही तुम
गुनगुना रहे थे
हंस-हंसकर बातें
कर रहे थे
मैं हिंदी हूं।।

अल्लाह की अजान से
राम की कमान में
मैं ही हूं
मैं हिंदी हूं।।

प्रेम के इजहार से
आपसी तकरार में
मैं शामिल हूं
मैं हिंदी हूं।।

राज्य भाषा कहूं
या संपर्क भाषा
दोनों में मैं ही हूं
मैं हिंदी हूं।।

कश्मीर से कन्याकुमारी
कच्छ से अरुणाचल
मेरे अंदर बस्ती हैं
मैं हिंदी हूं।।

किसी भाषा से
न मेरा मुकाबला
न किसी के लिए चुनौती हूं
मैं हिंदी हूं ।।

शायर की शायरी
गीतकार के गीत
मुझमें समाहित है
मैं हिंदी हूं।।

मैं खुद चुनौती का
सामना करती हूं
नित्य नए भारत की
तस्वीर गढ़ती हूं
मैं हिंदी हूं।।

बहुत चोट खाया
बहुत राजनीति हुई
फिर भी दंभ के साथ जिंदा हूं
मैं हिंदी हूं।।

दिलों को जोड़ती हूं
मुद्दों की बात करती हूं
जमीन की बात करती हूं
मैं हिंदी हूं।।

भारत के कन कन से
जन जन के कंठ तक
मेरा स्वर गूंजता है
मैं हिंदी हूं।।

लुटियन का दिल्ली हो
गरीब नवाज का दरगाह
जब भी इंकलाब या
दुआ में हाथ उठता है
मुझ में ही होता है
मैं हिंदी हूं।।

लिखा इतिहास मुझमें
लिखा है वर्तमान मुझमें
भविष्य की राह बताती हूं
मैं हिंदी हूं।।

गरीबों के झोपड़े से लेकर
अमीरों के घोसले में
मैं ही निवास करती हूं
मैं हिंदी हूं।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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