पटना से दिल्ली

जमीन से आसमान तक
ख़ाक छानता फिरता हूं
तेरा विस्तार कहाँ तक फैला
समझने की कोशिश करता हूं।।

न ऊंचाई समझ आती है
न गहराई का पता चलता है
बस एक अंदाज़ के सहारे ही
आगे बढ़ता जाता हूं।।

किस ओर कौन सी डगर
कहां ले कर जाए नहीं पता
उजालों की आस लिए
अंधेरों से लड़ता हूं।।

एक बात जो दिखता है
मनुष्य की हदों से आगे
तुम्हारा विस्तार है
तुम्हारे परिधि में ही
फैला समस्त संसार है।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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