बतरा, मुखर्जी नगर
और गांधी विहार
से बड़ा हैं
दिल्ली।।जेएनयू और नार्थ कैंपस
में भी नहीं
समा सकती
दिल्ली।।जनपथ और राजपथ
के केंद्र में
नहीं बसती
दिल्ली।।झील सी नज़रों
की गहराइयों में भी तलाशा
नहीं मिली
दिल्ली।।सोचा क्या ग़ालिब
के रवायतों में हैं
दिल्ली।।हज़रत निजामुद्दीन की
जियारत में हैं क्या
दिल्ली।।कल पहाड़गंज
की गलियों में
घूमते हुए सोचा
फिर कहां
दिल्ली।।चाय का प्याला
लिए हाथों में
समझ में आया
बस यहीं
दिल्ली।।कुछ अधूरा
कुछ पूरा
होने का
अहसास हैं
दिल्ली।।।शब्द कम
भाव ज्यादा हैं
दिल्ली।।सब की थी
और हैं
तो मेरी भी
हैं और रहेगी
दिल्ली।।😊😊@अजय कुमार सिंह
और गांधी विहार
से बड़ा हैं
दिल्ली।।जेएनयू और नार्थ कैंपस
में भी नहीं
समा सकती
दिल्ली।।जनपथ और राजपथ
के केंद्र में
नहीं बसती
दिल्ली।।झील सी नज़रों
की गहराइयों में भी तलाशा
नहीं मिली
दिल्ली।।सोचा क्या ग़ालिब
के रवायतों में हैं
दिल्ली।।हज़रत निजामुद्दीन की
जियारत में हैं क्या
दिल्ली।।कल पहाड़गंज
की गलियों में
घूमते हुए सोचा
फिर कहां
दिल्ली।।चाय का प्याला
लिए हाथों में
समझ में आया
बस यहीं
दिल्ली।।कुछ अधूरा
कुछ पूरा
होने का
अहसास हैं
दिल्ली।।।शब्द कम
भाव ज्यादा हैं
दिल्ली।।सब की थी
और हैं
तो मेरी भी
हैं और रहेगी
दिल्ली।।😊😊@अजय कुमार सिंह