ए हवा सुनो
पत्ता हूँ मैं
जहाँ चाहो
उड़ा ले चलो।।
न कोई मुझे जनता है
न कोई पहचानता है
जहाँ हूँ वहीं
पता मेरा।।
स्थायित्व का बोध नहीं
रमता जोगी हूँ
बहता पानी हूँ
यही कहानी मेरा।।
ए हवा अपने साथ
ले चलो मुझे
तुम्हारे साथ
दुनिया देखना चाहता हूँ।।
दूर हरे-भरे खेत
पेड़ों से भरा वन
ऊँचे-ऊँचे पर्वत
बहती नदियाँ
देखना चाहता हूँ।।
टंगा रहा हूँ
पेड़ पर अब तक
अब जा कर अलग हुआ हूँ
उड़ा चल मुझे
नया ठिकाना चाहता हूँ।।
मुझ पर रोना गलत है
मुक्त हुआ हूँ मैं
अब तक प्राण था
ऊर्जा हुआ हूँ मैं।।
चल ले चल मुझे
इस से पहले की देर हो
कोई मुझ में आग लगाये
कोई मुझ पर पानी डाले
मिट्टी मुझे आगोश में ले
मैं दुनिया देखना चाहता हूँ।।
मारा नहीं
जीवित हूँ मैं
बस प्रयोजन बदला है
शरीर तो नश्वर है
ऊर्जा ही ईश्वर है।।
@ अजय