पांच डिग्री

 
 
तेरा दीदार 
 इस मौसम में हो 
 तो क्या बात है 
 थोड़ी तबियत सुधर जाए 
 मन को गर्माहट भी मिल जाए।।

मौसम की सितम 
तुझ से जोड़ती है
तेरी याद 
अंदर का दर्द 
बाहर ले कर आती है।।

बढ़ती ठंड 
तेरा ही तो जलवा है
सुन रखा है मैंने 
तेरी मर्ज़ी के बिना 
पत्ता भी नहीं 
डोलता है।।

क्या खाता हुई
जो बर्फ घोल दी है
हवाओं में 
कांटे की तरह चुभती है
क्रिया को निष्क्रिय करती है।।

अगर जो गुस्सा हो तो
क्यों नहीं परिवर्तन लाते
तेरे ही हाथों तो सत्ता है
चेले-चमचों की मदद से
कब तक सत्ता चलाएगा। 

बिना गुनाह के ही
कब तक आवाम पर
मौसम का कहर 
यूं ही बरपायेगा।।
    @अजय कुमार सिंह 




ajaysingh

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