Battle


रणभूमि में योद्धा
हाथ तलवार लिए खड़ा
सोचा किसे मारू
सब पहले से ही
मृत पड़ा।।
ललकार रही दिशाएं
क्षितिज भी चिड़ाती है
अंग-अंग से
लगती हवाएं
सबकी हार की
गाथा सुनाती है।।
है तीनों लोकों
के स्वांमी
सूर्य-चंद्र और दिशाएं
पहले से ही चरणों
में पड़ा।।
बोल किसे ललकारू
सब पहले से ही
मृत पड़ा।।
चाहते हो तुम
खुद को ललकारू
अंदर के
रणभूमि में
बन योद्धा
खुद को पछाड़ू।।
काम-लोभ और माया से
होगा संग्राम बड़ा
हारा तो सिंहासन
जीता तो तपस्वी
समीकारण जटिल बड़ा।।
गुणा-गणित करके
युद्ध कहां योद्धा करता है
दुश्मरन जब हो सामने
जीत-हार की चिंता छोड़
हुंकार रणक्षेत्र में भरता है।।
कहां तुम समझने वाले
माया- मोह से
मुझे घेरने वाले
तुम ठहरे
इंद्र के पुजारी
हम ठहरे
योद्धा खड्गधारी।।
महाकाल के
काल में
जीवन नजर आता है
श्म शान की राख से
तिलक लगाते है
महलों और सिंहासन को छोड़
कैलाशपति
हम कहलाते है।।
जो तोड़ चुका सारे बंधन
उसे कौन बांधेगा
हुआ कहां पैदा
वह योद्धा
जो इस योगी
को हरायेगा।।
हार-जीत पर
अधिकार मेरा
सारी दिशाएं
सारे रास्तेर
मेरे।।
भूत मेरा
भविष्य मेरा
और वर्तमान में
तलवार लिए
खड़ा हूं तेरे वास्तेख।।
आ क्यूं डरा है
मुझसे
तेरे प्रपंच को
भेदने
एक से एक
अस्त्रे लाया हूं ।।
तोड़ा जो न
तेरा तिलिस्मो
योग क्या मैं
पाया हूं।।
आ निकल बाहर
युद्ध कर मुझसे
तेरी हार की कहानी
लिख कर आया हूं।।
छोड़ता हूं सारे
आलंबन तेरे वास्तें
योग के सहारे
तुझसे लड़ने आया हूं ।।।।
- अजय कुमार सिंह

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