कर्म पथ का पथिक
मैं तो कर्ण ही ठहरा
रणभूमि में रोज
फंसता है मेरा
रथ का पहिया।।
न कृष्ण का साथ मिला
न मर्यादा पुरुषोत्तम
का ही अहसास हुआ
मैं तो बस भस्म में भूत
योग के सहारे ही
युद्ध भूमि में ललकार पड़ा।।
न अस्त्र है
न शस्त्र है
बस खाली हाथ
अपनी ही तेज के सहारे
कौरवों के झुंड को
निस्तेज करने निकल पड़ा।।
कौन जानता है
सत्य इतिहास का
वर्तमान की धरा पर ही
मैं इतिहास की कोख से
पैदा हुआ।।
भविष्य की राह
भाविष्य ही जाने
अनजान राहों की तरफ
जोरदार हुंकार करते हुए
मैं तो चल पड़ा ।।
@अजय कुमार सिंह