दुआ


देखते हैं यह नजारा
किधर जाता है
देखते हैं यह इशारा
किधर जाता है।।

निकले हैं हम भी घर से
समंदर में कश्ती लेकर
देखते हैं यह सफर
आगे-आगे किधर जाता है।।

चलते चले जा रहे हैं
चुपचाप अंधेरों में
देखते हैं उजालों की तलाश में
यह तलाश किधर जाता है।।

गर्दिशों में छुपे है
सितारे मेरे
देखते हैं आने वाला सुबह
किधर जाता है।।

जरूरी नहीं है चाहतों से
साथ मिल जाये किसी का
देखते है चाहतों की तलाश में
यह रास्ता किधर जाता है।।

बहुत दर्द है
बहुत नग़मे हैं दुख भरी
देखते है दुआ की मुराद
किस दर पर ले कर जाता है।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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