देवत्व


न देवता हूं
न दानव हूं
क्या मैं सिर्फ मानव हूं।।
न देवत्व को पाया
न दानों की शक्ति मिली
मानव बनना चाहा
वह भी अधूरी रही।।
त्रिशंकु सी है
जीवन लीला मेरी
न इधर का ही हुआ
न उधर ही जा सका।।
जिस घाट पर रुक कर
प्यास बुझाना चाहा
कारवां वही मेरा डूबा।।
इतने मोड़ जीवन में
कि अब हर मोड़
सीधा लगता है।।
देखते हैं अगला
कौन सा मोड़
जीवन में आता है।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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