आकर्षण


हाय रे योगी
नहीं देखा गया तुझसे खुशी मेरी
इससे पहले मेरे सपने आकार लेती
नींद तोड़ दी मेरी।।
मैं भी हूं सब की तरह
फिर क्यों मेरे साथ सीनाजोरी
अभी-अभी तो शुरू हुई थी दास्तां
फिर क्यों खत्म कर डाली।।
सबको आशीर्वाद
मुझे जन्म से श्राप
चल बात दे अब
कब होगी तेरी इंतकाम पूरी।।
परम ज्ञानी महायोगी बनते हो
फिर क्यों अन्याय करते हो
सबसे खफा बस तुमसे थी उम्मीद
हमेशा तुम मुझको मोहरा बनाते हो।।
खुद पर तरस आता है मुझे
हद होती है हर प्रतीक्षा की
इतना क्यों हर चीज के लिए तरसाते हो
जब जरूरत नहीं है इन सब की
फिर क्यों मन में आकर्षण जगाते हो।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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