गंगा

जब मन उदास होता है
तुम्हारे पास आता हूं
कुछ समझ नहीं आता
बोलना क्या है
बस चुपचाप एक टक
तुमको देखते रहता हूं।।

तुम भी कहां कुछ बोलती हो
चुप रह कर ही धीरज धरती हो
मेरे विचार तुम्हारे प्रवाह में मिल कर
मुझे शांति प्रदान करती है
तुम कुछ ना भी बोलो
फिर भी तुम मुझको समझती हो।।

उलझा रहता हूं अमूमन
एक साथ कई सवालों में
व्यक्तित्व बटा रहता है मेरा
कुछ बीते घटनाओं में
कुछ भविष्य की कल्पनाओं में।।

तुम्हारे सानिध्य आकर
माँ का ममत्व पता हूं
मन में ही तुमसे
घंटों वार्तालाप करता हूं
बैठ किनारे चुपचाप
मन को दिलासा
दिल को सुकून देता हूं।।

अलखनंदा, गंगा न जाने
कितने नाम तुम्हारे
विशाल हृदय तुम्हारा
गहरी काया तुम्हारी
तुम्हारे दर्शन से
जीवन धन्य हो हमारी।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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