बादलों से घिरा है
प्यारा गांव मेरा
नदी-नाले सब
लबालब भरे हैं।।
पेड़-पत्ते हरियाली
से झूम रहे हैं
पानी में मेंढक
तैर रहे हैं।।
मवेशियों का मत पूछो
खा-खा कर अघाये हैं
बारिश का पानी पीकर
घास भी लहलहाये हैं।।
इधर मन भी बाबरा
बन बैठा है
प्रकृति को अपने अंदर
कैद करना चाहता है।।
हरे ऊँचे बांस की
ऊंचाई नापना चाहता है
चिड़ियों से बात करना चाहता है
पोखर में तैरना चाहता है।।
गांव की बात निराली है
जहां तक नजरें जाती है
हरियाली ही दिखती है
ऊंचे-ऊंचे पहाड़ दिखते हैं
पानी से भरे खेत दिखते हैं
इन्हें देख कर
मन अगाध शांति पाता है
प्रकृति की कोमलता
महसूस होती है
भविष्य की राहें
आकर्षित करती है।।
।। अजय।।