जुनून



 
एक सिलसिला है 

जो मेरे 

अंदर चला रहा है ।।


जैसी जैसे ही आग 

शांत होती है 

एक चिंगारी सी जल उठती है।।


 मेरी चाहत के 

विरुद्ध ही 

मेरी चाहत 

आकार लेती है।। 


ख़ुद से जीतने 

की जद्दोजेहद 

ही मुझे 

नए राह की ओर 

ले कर जाती है ।।


रचने का 

जुनून जो 

होता 

तो नष्ट होने का डर 

ज़रूर सताता।।

 

समय को गढ़ते-गढ़ते

अतीत से नाता 

तोड़ दिया है मैंने ।।


आज जो मैं हूँ 

उसमें कल का 

कुछ भी नहीं।। 


अपने इन हाथों से 

गढ़ा है 

वर्तमान मैंने ।।

 

 ।। अजय।।

ajaysingh

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