[caption id="attachment_68" align="alignleft" width="1440"] An inspiration [/caption]
एक प्याला चाय का और मिला जो उनका साथ बात से बात बनती गई और पता नहीं कब बीत गई रात। चाय हलक के नीचे जाते ही होश ठिकाने आई। सही-गलत का फर्क समझा। महक उठी मेरी तरूनाई । अंग-अंग जागा। दूर हुई मेरी अंगड़ाई। चाय गजब की चीज जो पी सो जाने। बात बनती है। फीके पड़ जाते सामने इसके मैखाने। चाय बिन जीवन तन्हाई बन जाती हैं। चाय के साथ जीवन रंगीन हो जाती है। हर एक कदम बेधड़क हो जाता है। चाय पीने के बाद व्यक्ति सच्चाई से टकराता है।
ट्रेन में चाय-चाय की आवाज सुबह का अहसास करवाता है। प्लेन में चाय स्टेटस सिंबल बन जाता है। अंधेरी रात में जब चाय हाथ में आता है तो दिन का सूरज रात में नजर आता है। थक जाओ तो चाय अंग-अंग को सहलाता है। पक जाओ तो चाय तरो-ताजा कर जाता है। देश-दुनिया की भेद चाय समझाता है। यह साधारण आदमी को भी ज्ञानी बनाता है। बिगड़े रिश्तों को चाय पटरी पर लाता है। यही नहीं नये रिश्तें भी चाय बनवाता है।
लंका चौराहे का चाय (बीएचयू मेन गेट) बनारसी ठाट जगाता है। बतरा (दिल्ली, मुखर्जीनगर) के कोने का चाय सीधे यूपीएससी निकलवाता है। मंदिर के प्रांगण में चाय साक्षात देव-दर्शन करवाता है। मस्त बाला के साथ चाय अलग ही छाप छोड़ जाता है। चाय दुकान बिहार का राजनीतिक अखाड़ा बन जाता है। काशी घाट का चाय अध्यात्म के गुढ़ समझाता है। अगर जो खाली-पीली चाय पी तो ससुरी पेट और होठ को जलाता है। चाय बड़ी काम की चीज भूख मार काम को आगे बढ़ाता है। जब कोई चिल्लाता है तो एक कप चाय में मूड बदल जाता है। असर यह कि सामने वाले से माफी की दहाड़ लगाता है। चाय जीव-जगत के पार का रहस्य समझाता है। देवताओं से भी हॉटलाइन करवाता है ।
चाय पीने वाला खुद का भाग्य-विधाता बन जाता है। देव भूमि भारत के जर्रे- जर्रे से चाय मिलवाता है। चाय की यह महिमा की तुरंत यादों में ले जाता है। चाय तन-मन में ऐसी ओज जगाता है कि प्रसन्न हो मन महाकाल के दरबार में हाजरी लगाता है। मदमस्त हो मन काशी घाट पर जा मडराता है।
चाय हसीनओं के मोह-पास से बचाता है। सागर से गहरी आंखों के तिलिस्म को चाय भेद जाता है। चाय से बेचारी मदीरा यहीं पर मार खा जाता है। चाय आशिक से इंटेलेक्चुअल बनाता है। साला एक कप चाय में आदमी बदल जाता है। चाय पी डूबा तेरी भक्ति में राग-रंग कहां उसे चढ़ पाता है। असंभव सा काम भी संभव नजर आता है। चाय दिमाग की हर बत्ती को जलता है। प्रचंड वेग से मन नकारात्मकता से टकराता है।
समझ की बात इतनी चाय सस्ती जीतनी। चाय है भाई नहीं कोई साधारण प्याला जो पिया वही जीया। जो नहीं पिया वो क्या जीया ? इसे पिये मेहनत-मजदूरी करने वाला। और पिये सत्ता के नशे में चूर बुजरोवाला (बनारसी गाली)। देश में चाय पर चर्चा हो तो सत्ता बदल जाए। दम चाय में कि सड़क से संसद तक पहुंचाए।
कैसा-कैसा सत्य जगत का चाय हमें बतलाएं। अकेले का चाय एकात्मवाद तो समूह का चाय समाजवाद की ओर ले जाएं। चाय से बड़ा आकर्षण नहीं कोई। सुबह का चाय जो छूटे तो यह बात समझ में आए।
चाय की यह माया कि होठ से लगते ही अंदर का भाषाण-बाज बाहर आया। जब हो मस्त मगन तब पिओ चाय। अरे भाई चाय के आग्रह को भी कोई ना कह पाता है। और मिले जो खाटी चाय तो गैस और एसिडिटी भाग जाता है। तन-मन स्वस्थ्य हो जाता है । तो भाईयों चाय के हैं बड़े काम मात्र पांच रूपये हैं दाम। कोलकता में कई जगह केवल चार रूपये में मिल जाता है। मुफ्त में पीनी हो तो कोई चायबाज मुझ जैसा जरूर मिल जाता है।
एक प्याला चाय का और मिला जो उनका साथ बात से बात बनती गई और पता नहीं कब बीत गई रात। चाय हलक के नीचे जाते ही होश ठिकाने आई। सही-गलत का फर्क समझा। महक उठी मेरी तरूनाई । अंग-अंग जागा। दूर हुई मेरी अंगड़ाई। चाय गजब की चीज जो पी सो जाने। बात बनती है। फीके पड़ जाते सामने इसके मैखाने। चाय बिन जीवन तन्हाई बन जाती हैं। चाय के साथ जीवन रंगीन हो जाती है। हर एक कदम बेधड़क हो जाता है। चाय पीने के बाद व्यक्ति सच्चाई से टकराता है।
ट्रेन में चाय-चाय की आवाज सुबह का अहसास करवाता है। प्लेन में चाय स्टेटस सिंबल बन जाता है। अंधेरी रात में जब चाय हाथ में आता है तो दिन का सूरज रात में नजर आता है। थक जाओ तो चाय अंग-अंग को सहलाता है। पक जाओ तो चाय तरो-ताजा कर जाता है। देश-दुनिया की भेद चाय समझाता है। यह साधारण आदमी को भी ज्ञानी बनाता है। बिगड़े रिश्तों को चाय पटरी पर लाता है। यही नहीं नये रिश्तें भी चाय बनवाता है।
लंका चौराहे का चाय (बीएचयू मेन गेट) बनारसी ठाट जगाता है। बतरा (दिल्ली, मुखर्जीनगर) के कोने का चाय सीधे यूपीएससी निकलवाता है। मंदिर के प्रांगण में चाय साक्षात देव-दर्शन करवाता है। मस्त बाला के साथ चाय अलग ही छाप छोड़ जाता है। चाय दुकान बिहार का राजनीतिक अखाड़ा बन जाता है। काशी घाट का चाय अध्यात्म के गुढ़ समझाता है। अगर जो खाली-पीली चाय पी तो ससुरी पेट और होठ को जलाता है। चाय बड़ी काम की चीज भूख मार काम को आगे बढ़ाता है। जब कोई चिल्लाता है तो एक कप चाय में मूड बदल जाता है। असर यह कि सामने वाले से माफी की दहाड़ लगाता है। चाय जीव-जगत के पार का रहस्य समझाता है। देवताओं से भी हॉटलाइन करवाता है ।
चाय पीने वाला खुद का भाग्य-विधाता बन जाता है। देव भूमि भारत के जर्रे- जर्रे से चाय मिलवाता है। चाय की यह महिमा की तुरंत यादों में ले जाता है। चाय तन-मन में ऐसी ओज जगाता है कि प्रसन्न हो मन महाकाल के दरबार में हाजरी लगाता है। मदमस्त हो मन काशी घाट पर जा मडराता है।
चाय हसीनओं के मोह-पास से बचाता है। सागर से गहरी आंखों के तिलिस्म को चाय भेद जाता है। चाय से बेचारी मदीरा यहीं पर मार खा जाता है। चाय आशिक से इंटेलेक्चुअल बनाता है। साला एक कप चाय में आदमी बदल जाता है। चाय पी डूबा तेरी भक्ति में राग-रंग कहां उसे चढ़ पाता है। असंभव सा काम भी संभव नजर आता है। चाय दिमाग की हर बत्ती को जलता है। प्रचंड वेग से मन नकारात्मकता से टकराता है।
समझ की बात इतनी चाय सस्ती जीतनी। चाय है भाई नहीं कोई साधारण प्याला जो पिया वही जीया। जो नहीं पिया वो क्या जीया ? इसे पिये मेहनत-मजदूरी करने वाला। और पिये सत्ता के नशे में चूर बुजरोवाला (बनारसी गाली)। देश में चाय पर चर्चा हो तो सत्ता बदल जाए। दम चाय में कि सड़क से संसद तक पहुंचाए।
कैसा-कैसा सत्य जगत का चाय हमें बतलाएं। अकेले का चाय एकात्मवाद तो समूह का चाय समाजवाद की ओर ले जाएं। चाय से बड़ा आकर्षण नहीं कोई। सुबह का चाय जो छूटे तो यह बात समझ में आए।
चाय की यह माया कि होठ से लगते ही अंदर का भाषाण-बाज बाहर आया। जब हो मस्त मगन तब पिओ चाय। अरे भाई चाय के आग्रह को भी कोई ना कह पाता है। और मिले जो खाटी चाय तो गैस और एसिडिटी भाग जाता है। तन-मन स्वस्थ्य हो जाता है । तो भाईयों चाय के हैं बड़े काम मात्र पांच रूपये हैं दाम। कोलकता में कई जगह केवल चार रूपये में मिल जाता है। मुफ्त में पीनी हो तो कोई चायबाज मुझ जैसा जरूर मिल जाता है।
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