जीवन शेष है



जीवन शेष है

खुद से रूठा रहता हूं

न जाने किसकी तलाश है

सब कुछ है कहने को

फिर भी जीवन जिंदा लाश है।।



अंधेरे में रोज खुद को खोजता हूं

थक कर उजाले की ओर देखता हूं।।



हार कर अपनी राह को पीटता हूं

भाग्‍य- वाग्‍य नहीं मानता मैं

योग की राह तय होती मंजिल मेरी।।



योद्धा हूं लड़ता हूं

रगड़ता हूं रगड़ाता हूं।।



जीत को चुपके से स्‍वीकारता हूं

हारने का जश्‍न मनाता हूं

फिर से पूरे ब्रह्मांड को ललकारता हूं।।



कौन है वह शक्ति जो मुझे मारेगी

जो हारा हुआ है उसे कौन हरायेगी।।



रणवीर हूं हुंकार करता हूं

शंख की नाद पर खुद की जयकार करता हूं

जीवन और मृत्‍यु दोनों का अंगीकार करता हूं।।



समय का सिपाही हूं

समय को स्‍वीकार करता हूं।।



जो हुआ न लक्ष्य मेरा

वैसे लक्ष्य को धिक्‍कार करता हूं।।



कर्मयोग के प्रत्यंचा से

बाण मार लक्ष्‍य पर प्रहार करता हूं।।



सनकी हूं, योगी हूं, परम ज्ञानी हूं

घमंड नहीं खुद पर अभिमान करता हूं।।



शंख, चक्र, गद्दा हथियार मेरा

कौन करेगा तिरस्‍कार मेरा

ग्रह-नक्षत्र पर वार करता हूं।।



प्रचंड है तप मेरा

अडिग है पथ मेरा

धरती से नभ तक

खुद का विस्‍तार करता हूं।।



कौन है जो रोके रास्‍ता मेरा

भस्‍म-भूत योगी से वास्‍ता तेरा।।



महाकाल हूं

काल का अवतार हूं

श्मशान में लगता दरबार मेरा।।



भूत-भविष्‍य से परे मैं

समय-च्रक पर अधिकार मेरा।।



जो खुला नेत्र मेरा

सोच क्‍या होगा तेरा

तुझे मुझ से बचाता योग मेरा।।



शांत हूं, स्थिर हूं, मौन हूं

साधक हूं साधना

ही संस्‍कार मेरा।।

  • अजय कुमार सिंह

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