अमरकंटक-4






ओ इस कायनात के कारसाज
बख्श दे अपने चाहनेवालों को
की तेरी जुस्तजू लिए
तेरे हुकूमत में मतवाला
घुसा चला आया है।।





शहंशाह है तू इस रियासत का
अदने से है हम
की तेरा दीदार पाने
फरियादी तेरे दर पर आया है।।





तेरी दरियादिली के चर्चे आम है
खाली न गया कोई दर से तेरे
अरमां का गुलिस्तां सजाये
दीवाना इधर आया है।।





तेरी नज़र-ए-इनायत हो तो
हम भी बदल ले मुक़द्दर अपनी
दर-ब-दर की ठोकरे खा कर
यह फ़क़ीर खुद से हुआ पराया है।।





@ अजय कुमार सिंह


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