
तेरी तलाश में 
जंगल, झरने, पेड़, पहाड़, खाई की 
पड़ताल करता हूं ।।
तेरा निशा नहीं मिलता 
फिर भी सब से तेरा पता 
पागलों की तरह पूछता हूं ।।
कहां ढूंढू तुम्हें 
समझ नहीं आता है 
पर तेरा वजूद
हर जगह नज़र आता है ।।
कहां आरंभ कहां अंत 
कौन गणितज्ञ समझाएगा
कब आरंभ कब अंत
है ज्योतिष जो बताएगा ।। 
जहां तक नजर जाती 
दिखता सिर्फ विस्तार है 
नहीं बना कोई शब्द जो 
इस सौंदर्य को गढ़ पाएगा ।।
डूबता सूरज क्षितिज में 
कल सुबह फिर निकल आएगा 
न जाने पूरी रात इस जंगल में 
कितना रहस्य गहरायेगा।।
योग में लीन महायोगी का
कौन डाकिया पता बताएगा
मिलना चाहता हूं
इस सृष्टि के रचयिता से
क्या कोई उससे मिलवायेगा।।       
 @अजय कुमार सिंह