रात गहरी होती जाती है
दर्द भी बढ़ती जाती है
सुकू का नामोनिशां नहीं
अंदर हलचल सा मचा है।।
समंदर में ज्वार भाटा आया है
लहरे दूर तलक उठ रही है
कुछ न कुछ हुआ जरूर है
शायद जमीं पर चांद उतर आया है।।
है कौन वह जो आज
ख़यालों में आया है
अपने साथ पूरा क़ायनात
सहेज कर लाया है।।
आंखों में उम्मीदें जगी है
दिल में अरमानों का बारात सजा है
बहुत हुआ अब आ भी जाओ
ये रात फिर नहीं आएगी।। @अजय कुमार सिंह
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