शृंगार

जब तुम सज- संवर कर
आती हो
देखने वालों का
मन मचल उठता है।।

बहुत जल्दी में तुम रहती हो
इसलिए ही तो
सफर में
अधूरा शृंगार पूरा करती हो।।

यह समा भी अजीब होता है
सामने तुम सज रही होती हो
हसरत भरी निगाह से तुमको
सब देख रहे होते हैं।।

तुमको फर्क नहीं पड़ता
तुम मजबूत हो, सशक्त हो
आत्मनिर्भर हो, तुम ही दिल्ली हो
यही तुम्हारी पहचान है।।

@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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