मझधार






मैं पूरा हूं
मैं अधूरा हूं
नहीं पता।।

जितना भरता हूं
उतना खाली होता हूं
जब खाली होना
चाहता हूं तो
भरने का एहसास होता है।। 





पूर्व से जो मिलती है
पश्चिम लुट जाती है
उत्तर से जो आता है
वह दक्षिण का
रुख कर जाता है।।





बीच मझधार में खड़ा
मैं सिर्फ दर्शक मात्र हूं
महफिल लुट जाती है
मैं देखता रह जाता हूं।।





अरमानों का लुटेरा
सब लुट जाता है
मैं लुटा-पीटा
खामोश रहता हूं।।





यथार्थ के कड़वे घूंट
हमेशा मेरे हिस्से आते हैं
जब आगे बढ़ना चाहता हूं
परिस्थितियां चट्टान 
बन कर खड़ी होती है ।।





@अजय कुमार सिंह






ajaysingh

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