भटकता फिरता हूं यहां-वहां
खोजता फिरता हूं खुद को जहां-तहां
आते-जाते लोगों को देखता हूं
सब में अपनी कहानी तलाशता हूं।।
ये प्यास है कैसी
जो बुझती नहीं
कैसी है यह आरज़ू
जो मिटती नहीं।।
नहीं पूछुंगा ख़ुदा से
कहां ले जाएगा यह कारवां
भटकने की आदत है
मिट भी गया तो रह
जाएगा अपना निशा।।
@अजय कुमार सिंह