रोज टूटकर बिखरता हूं
फिर खुद को समेटकर
आगे बढ़ता हूं ।।
कभी इच्छाओं का मैं
शिकार होता हूं
कभी इच्छाओं का मैं
शिकार करता हूं।।
कभी तेज हावी होता है
कभी काम सर चढ़ बोलता है
साधारण मनुष्य हूं
सच को स्वीकार करता हूं।।
गिरता-गिराता बिना वजह
अकेले खुद पर हंस लेता हूं
कल की परवाह छोड़
आज जश्न मनाता हूं।।
@अजय कुमार सिंह