जिंदगी


जिंदगी तुझे बड़े
शौक से जीता हूं
तू जितना मुझे
पटकता है रगड़ता है
मैं तुझे उतना पसंद करता हूं।।
तुझसे भला अब
क्या शिकायत करूँ
तू जैसा भी है
तुझमें खो कर ही तो
सुकू पता हूं।।
जिंदगी नाज़ है तुमपर
मकसद देता है तू मुझे
कुछ करने की
कुछ से कुछ हो जाने की।।
पता नहीं किस मोड़ पर
तू मुझे ले जाएगा
जितना तुझे एक धागे में
पिरोना चाहता हूं उतना ही
तू दूर होता जाता है जिंदगी।।
हमेशा तुझसे
ज्यादा की चाहत होती है
पता नहीं फिर क्यों
टुकड़ों-टुकड़ों में मिलता है
तू मुझे जिंदगी।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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