देहाती




जो भूखा है वर्षों से
उससे भूख पर विमर्श
हस्यास्पद है।।

जो रहा है जंगलों में
उससे संस्कार की अपेक्षा
नासमझी है।।

जो ठेठ देहाती है
उसके सामने ज्ञान का
प्रपंच बेकार है।।

जो सभ्यता से कटा है
सभ्य होने की उम्मीद उससे
निस्परिणाम है।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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