घर



कितनी अस्थिरता है मन में
सुकून का नामोनिशान नहीं
थोड़ी सी शांति मिलती है
उसी समय एक नया आंकड़ा
शांति छीन ले जाती है।।
चारदीवारी में कैद मन
दीवारों से टकराता है
कभी पलंग पर
कभी सोफा पर बैठ कर
पहर गिनता रहता है।।
काम के सिलसिले में
हमेशा समय से
सीनाजोरी करते रहना पड़ता है
यही वक्त है जब
अपनों के करीब हम सब है।।
चलो रिश्तो की नई इबारत
समय की धागों से बुनते हैं
अपने और अपनों के लिया
घर में रहते है और साथ इनके
कुछ नया करते है।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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