कर्म पथ पर
चुपचाप
अविरल हो
बढ़े चल।।
न देख इधर
न देख उधर
अपने धुन में मस्त
बढ़े चल।।
जमाना जो बोले
चुपचाप सुनते जा
अपनी काम में मगन
बढ़े चल।।
न क्रिया दे
न प्रतिक्रिया दे
बस चुपचाप
बढ़े चल ।।
न दिन की फिकर
न रात की चिंता
एकांकी हो
बढ़े चल।।
न शिकवा किसी से
न शिकायत किसी से
मजबूती के साथ
बढ़े चल।।
न रोके रुक
न तोड़े टूट
चट्टानी इरादों के साथ
बढ़े चल।।
न समय से घबरा
न परिस्थितियों के आगे झुक
सब से मुक्त हो
बढ़े चल।।
मेहनत कर
न पीठ दिखा
बढ़े चल
बढ़े चल।।
@अजय कुमार सिंह