मजदूर-2

आवारा बन निकला रात को
यह शहर क्यों है वीरान पड़ा
कोई रहता भी है क्या यहां
इससे ज्यादा तो शमशान हरा भरा।।
किससे पता पूछूं
जाना मुझको कहां
वीरान हैं रास्ते
चारों तरफ
अंधेरे का साम्राज्य खड़ा।।
वक़्त ऐसे होंगे किसे पता
कुछ जानने वाले पड़ोसी थे
नाता था उनसे हमारा
आज कहां गए नहीं पता।।
शिकायत है सबसे
जिन हाथों से शहर बनाये
जब जरूरत पड़ी तो
सबने मुँह मोड़ लिया।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

cool,calm,good listner,a thinker,a analyst,predictor, orator.

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने