मजदूर

कैसी जिंदगी है
रहस्यों से भरी हैं
आकर्षण कहीं जागता है
स्खलन कहीं होता है।।
जिसे नींद आती है
उसे सोने की जगह नहीं मिलती
पटरियों पर सोता है
जिसके पास सोने की जगह है
उसे नींद नहीं आती।।
भूख उसे लगती है
जिसके पास खाने का अभाव है
जिसके पास खाना है
वह टाइम देख बस खाता है।।
सच यह है कि
जिंदा सब है
रहस्य यह है कि
जन्म कहीं होता है
मृत्यु कहीं होता है।।
ज्ञान किसी और का
मंचों से बकैती कोई और करता है
जीवन है कि मदारी का खेल
साला पता नहीं चलता हैं।।
हाथों में घड़ी है
फिर भी बंदा देर होता है
बिना समय देखे कोई घर से निकलता है
हजारों किलोमीटर तय कर
समय को चुनौती देता है।।
मैयत ऐसी होगी उनकी
पता भी ना था
बड़ा नाम बड़ा कद
नौ अंकों में जमा पूंजी उनका
चार आदमी थे जनाजे में
धरा रह गया लाव-लश्कर उनका।।
वक्त है कोई नहीं जानता
कल क्या होगा
आज जिंदा हैं यह पता है
मर जाएंगे बन जाएंगे आंकड़ा।।
मजदूर हैं ज्यादा नहीं मांगते हैं
आजादी के इतने साल बाद भी
बस रोटी कपड़ा और मकान ही मांगते हैं।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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