रह-रह कर कोई छवि
दिमाग में आना फिर
अचानक गायब हो जाना
यही तो है विचलन।।
कई विचारों का साथ आना
फिर आपस में उलझ जाना
न समझ न समझा पाना
यही तो है विचलन।।
तय मंज़िलों का दूर होना
नए मंजिलों के क़रीब होना
बीच में अनिश्चिता का दौर
यही तो है विचलन।।
हँसी के सहारे ग़म को छिपाना
बंद कमरे में आंसू बहाना
खुद से भी सच को छिपाना
यही तो है विचलन।।
समय से आगे बढ़ जाना
समय से पीछे रह जाना
समय से सामंजस्य न बैठ पाना
यही तो है विचलन।।
@अजय कुमार सिंह