एकलव्य पथ

तू देख मुझको ललकारता है
प्रतिउत्तर में मैं दहाड़ता हूं
तू मेरे हौसले का इंतिहान लेता है 
मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकारता हूं।।
तू ऊँचाई से डराता है
मैं छलांग तुझ पर लगाता हूं
तू गिरने का भय दिखाता है
मैं चढ़ने का मादा रखता हूं।।
एक-एक कदम बढ़ाने से
तू मुझे रोकता है
हर कदम पर मैं
जीत का जश्न मानता हूं।।
तू रुकने को कहता है
मैं चलने को अभिशप्त हूं
तू बैठने को मजबूर करता है
बेपरवाह मैं आगे बढ़ता हूं।।
ओ एकलव्य पथ
तू यार है मेरा
जिन्दगी की हक़ीक़त बताता है
मैं एक झटके में नकारता हूं।।
- अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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