दीवानगी


चुप -चाप देखता हूं तुम्हें
बहुत अच्छी हो तुम
सोचता रहता हूं 
कितनी प्यारी हो तुम।।



पास आ कर भी
दूर रहती हो तुम
दूर रहके भी
पास होती हो तुम ।।
तेरी लब्जो की बयानगी
पता है मुझे
मुझसे मुझको
क्यों चुराती हो तुम।।
टूट कर बिखर जाती हो
पास मेरे
सीमट कर मेरे आगोश में
आती हो तुम।।
शर्म के दहलीज़ पर
होंठ कापते है तेरे
जैसे बारिश में भींग कर
आई हो तुम।।
मदहोशी में जाने
क्या-क्या बोला
हमेशा मुझको
संजीदगी से लेती हो तुम।।
तेरी आवारगी में
बिताता मेरा समय
एक-एक पल का
अहसास हो तुम ।।
मत पूछो हाल
मेरे दीवानेपन की
दिल का लूट जाने
का सबब हो तुम।।
- अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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