कोलकाता


दो महा के बीच
अधर में जिंदगी अपनी
एक महा में बैठा हूं
एक का कोई आता-पता नहीं
एक नगरों में महानगर है
एक देवों के देव हैं।।
एक में विचरण करते
दूसरे को खोजता हूं
जब दूसरे को खोजता हूं
तो पहला औकात बताता है।।
चमचमाती गाड़ी
बड़े-बड़े अटालिकायें
मखमली बाल और चिकनी चेहरे
तंग कपड़े और ऊपर से टैटू का जलवा
बाप रे बाप पागल हुआ जाता हूं।।
और उधर बर्फ की बिछी चादर
गंगा की लहराती धारा
बड़ी और सघन जटाए
गले में पड़ा विषधर
प्रचंड योग की धधकती उजाला।।
अच्छा है यह भी अच्छा है
चला था महायोगी को
महानगर में तलाशने
अपना फटे हाल देख
खुद पर ही तरस आता है।।
सुधर जा रे बच्चा
जो दिख रहा है
वह सत्य समय और समाज का
और जो दूसरा है वह
सत्य आस्था और विश्वास का
क्या अभी भी फर्क
समझ नहीं आया हैं।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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