आशिकी


इज़हार ही तो किया था
थोड़ी न घर पर तेरे
बारात ले कर आया था
सस्ते में चलता कर दी।।
क्या होता जो चुप-चाप
हां कर देती, आशिकों के फेहरिस्त में
अपना नाम भी शामिल होता ।।
लैला-मजनू, हीर-रांझा के बाद
तेरा-मेरा नाम स-सम्मान लिया जाता
मुझको तुम मिल जाती
तुमको मैं मिल जाता ।।
सोचा छोटा सा आशिकी
की दुकान मैं भी चलाऊंगा
आशिकी का भूत चढ़ता
उससे पहले ही तुमने दंगा कर दिया।।
सारे अरमान गुड़-मिट्टी हो गए
जब मेरे प्यार का
पंचनामा तुमने कर दिया
आशिकी गया तेल लेने
बंटाधार इश्क़ का हो गया।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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