पटना फिर से

आसान नहीं जो भूल जाओ मुझको
सोच समझकर बढ़ो मेरी तरफ़
साधारण नहीं ब्रम्हाण्ड हूँ मैं
खो जाओगे
तुम मुझ में।।
कुछ और नहीं है यह
जादू है व्यक्तित्व का
आकर्षण है चरित्र का
क्षणभंगुर है सब
फिर मत कहना
बताया नहीं।।
मैं जो हूँ वो हूँ
बदलाव सहज नहीं मुझे
धधकती ज्वाला हूँ
पिघल कर समा जाओगे
तुम मुझ में।।
मेरे पुरुषत्व से टकराकर
मासूमियत डर जाएगी तुम्हारी
दरिया हो तुम
समुद्र हूँ मैं
समाहित हो जाओगे
तुम मुझमें।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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