चरस


घने पेड़ों के बीच
रात बहुत घना है
कभी सर-सर
कभी खड़-खड़
सन्नाटा चारों तरफ
डरना मना है।।
अजीब-अजीब छायाचित्र
रह-रह कर मन में उभरती है
भूत-प्रेत चुड़ैल
सब साक्षात लगती है
कभी सियार की आवाज
कभी सांप-बिच्छू का डर सताता है।।
हे योगी रहस्य गहरा है तेरा
जितना छोटा तेरा नाम
दर्शन उतना बड़ा तेरा
एक बार तेरी सनक जिसे लग जाए
चरस, अफीम, भांग, धतूरा
सब के सब भस्म बन जाए।।
कल का मुद्दा क्या होगा
किस के सर पर ताज सजेगा
कौन औंधे मुंह गिरेगा
कौन महफिल लूटेगा
किस की महफिल लूट जाएगी
सब तेरे इशारों पर होता है।।
न तेरे आगे कुछ है
न तेरे बाद कुछ रहेगा
आरंभ भी तुझसे
अंत भी तुझ पर
तुझसे ही महफिल
तुझसे ही श्मशान सजेगा।।
@अजय कुमार सिंह

ajaysingh

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