ओ बारिश बहुत तड़पाते हो तुम
जितना मैं तुम में डूबना चाहता हूं
उतना ही तरसाते हो तुम।।
आंखें भर आई है
दिल बैठा जा रहा है
ओ बारिश पुरानी यादों को
क्यों जागते हो तुम।।
सुबह से बरसते जा रहे हो
कभी सोचा भी है
गमजदा दिल पर
कितना कहर बरपाते हो तुम।।
शाम ढली
अब रात होने को आई
साथ मेरे क्यों नहीं एक प्याला
छलकाते हो तुम।।
अकेले कब तक बरसोगे
साथ मुझे ले लो
आखिर क्यों नहीं
मुझको समझते हो तुम।।
तुम जब बरसते हो
सच कहता हूं मैं
मेरी यादों, मेरी जज्बातों को
तहस-नहस कर जाते हो तुम।।
प्यार करता हूं तुमको बारिश
दिलों-जान से सच में
मुझ से मत पूछो
खुद से पूछो तुम।।
@अजय कुमार सिंह
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प्रकृति