आग हूं
जल जाओगे
दूर रहो
फिर मत कहना
बताया नहीं।।
न घर है
न शहर अपना
भटकता रहता हूं
अंजान तलाश में
रुकना कभी
स्वीकारा नहीं।।
महफिल भाती नहीं
यादों का सहारा है
वादियों का साथ है
खूब नहाया जी भर
सावन की चाहत जाती नहीं।।
अंधेरों और उजालों के बीच
खड़ा हूं
किस से दोस्ती
किस से दुश्मनी निकालूं।।
दिन का जला
रात से ठंडक मांगता हूं
रात में डरा
दिन में पनाह खोजता हूं।।
करना बहुत है
कहाँ से शुरू करू
कल पर मैंने
आज को छोड़ा नहीं।।
@अजय कुमार सिंह
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जीवन