चलो थोड़ी और
उधम मचाते हैं
बहुत ठंड है यहां
थोड़ी और आग
पैदा करते हैं।।
सब धुंआ है
सब धुंआ हो जाएगा
जब चेतना अनंत में
विलीन हो जाएगा
फिर क्या करना है रो कर
कुछ तूफानी करते हैं
थोड़ी और आग
पैदा करते हैं।।
कल तक वक्त कहां है
आज का पता कहां है
मैं-तुम तुम-मैं बहुत हुआ
चलो हम करते हैं
थोड़ी और आग
पैदा करते हैं।।
इससे पहले की खारिज हो
वक्त हमसे मुंह मोड़े
काल आ कर हमें घेरे
वक्त को अपने अनुसार मोड़ते हैं
थोड़ी और आग
पैदा करते हैं।
@अजय
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जीवन