चांद

 


ए चांद सुनो
थोड़ी ठंडक दो 
मेरा पथप्रदर्शक बनो
अंधेरी रात में 
मेरा दिया बनो।। 

घिरा हुआ हूं 
महत्वकांक्षा की चिता तले
पल-पल मरता हूँ
अपनी विचारों में
मेरी सहायता करो
मुझे बाहर निकालो।।

शब्द नहीं बताने को मेरे पास 
कैसे कहूँ तुम से 
खुद ही समझो 
या तो महत्वकांक्षा पूरी करो 
नहीं तो मुझे माफ़ करो।।

महत्वकांक्षा की मार 
बड़ी भयानक होती है
रचने की जुनून में 
नष्ट होते जाते है 
पाने की चक्कर में 
खोते जाते है ।।

अब चांद बताओ तुम 
क्यूँ ना तुम से गुहार लगाऊँ
जिस मोह चक्र में फँसा हूँ
तुम से अगर नहीं तो फिर 
किस से अपनी मन का 
मर्म बताऊँ।।
@ अजय

ajaysingh

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