दशरथ माँझी

काश की मैं 

पहाड़ होता

हौसले बुलंद होते मेरे

इरादे चट्टानी होती मेरी।।


न किसी से डरता 

न किसी की परवाह करता 

खड़ा रहता सीना तान 

धूप में बरसात में।।


मुझको तोड़ कर 

लोग अमर होते 

मेरी उदाहरण 

सब दिया करते।।


कोई मुझ पर चढ़

कीर्तिमान रचता 

कोई मुझ पर तप कर

योगी बनता ।।


सभ्यताओं की इतिहास

मुझ पर खोजी जाती

नानी-दादी की कहानियों में

मेरा महिमा मंडन होता।।

@अजय 

ajaysingh

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